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बुधवार, 9 जुलाई 2025

"झील के उस पार: एक ऐसी मोहब्बत जो मौत से भी ज़िंदा रही"



 "खूनी झील की मोहब्बत" — एक सच्ची मोहब्बत जो मौत से भी आगे निकल गई

💔 "झील में दबी मोहब्बत" — एक अमर प्रेम कथा


यह कहानी नहीं, एक अनुभव है… जिसे पढ़ने के बाद शायद आप भी रात में उस झील की ओर खिंचने लगेंगे…)


भूमिका


हिमालय की तलहटी में बसा एक छोटा-सा गांव था — बिनोरी। चारों ओर घना जंगल, बीचों-बीच एक रहस्यमयी झील और उसके किनारे एक पुरानी हवेली।

कहते हैं कि उस झील में कोई उतर जाए, तो लौटकर नहीं आता… और जो लौटे, वह पहले जैसा नहीं रहता।


लेकिन यह कहानी केवल डर की नहीं है। यह प्रेम, त्याग, विश्वास, और मौत से परे जाने वाले रिश्ते की कहानी है।

यह कहानी है आरव और सायरा की… एक ऐसी मोहब्बत की, जिसे झील भी समा न सकी।


कहानी की शुरुआत होती है - बिनोरी की ओर कदम


आरव शर्मा, दिल्ली यूनिवर्सिटी का छात्र, शांत स्वभाव का, लेकिन अंदर से बेहद भावुक। उसका जीवन पढ़ाई और अकेलेपन में बीतता था। कॉलेज के प्रोजेक्ट के लिए उसे उत्तराखंड के एक गांव जाना पड़ा — “बिनोरी”, जो नैनीताल से करीब 20 किलोमीटर दूर था।


गांव बहुत सुंदर था, लेकिन उसके चारों ओर एक अजीब सी ख़ामोशी थी। लोग जल्दी दरवाज़े बंद कर लेते, और रात को किसी को बाहर निकलने की इजाज़त नहीं थी।


आरव ने जब झील के बारे में पूछा, तो सब चुप हो गए। गांव का सबसे बुज़ुर्ग आदमी बस इतना बोला —


> "उस झील में किसी की मोहब्बत दबी है, बेटा… लेकिन अब वो मोहब्बत नहीं, मौत है।"


पहली मुलाकात


एक सुबह, जब आरव झील के किनारे बैठा कुछ स्केच बना रहा था, तभी उसकी नजर सायरा पर पड़ी।

लंबे खुले बाल, सफेद सूती सलवार-कुर्ता, आंखों में अजीब-सी गहराई। वह किसी किताब से निकली कोई रहस्यमयी कविता लग रही थी।


सायरा ने मुस्कुराकर कहा —


> “तुम पहली बार आए हो ना इस गांव में? इस झील को ध्यान से देखो, ये कभी किसी से अपना राज़ नहीं छुपाती।”


आरव उसकी बातों में खो गया। उसके बाद दोनों की रोज़ मुलाकात होने लगी। बातें, हँसी, दर्द, सपने… सब कुछ बंटने लगा।


लेकिन आरव ने एक अजीब चीज़ महसूस की —

सायरा कभी झील से दूर नहीं जाती थी। वह सिर्फ रात के समय दिखती थी। गांव वाले उससे बात नहीं करते थे। और सबसे अजीब बात — उसकी परछाई कभी दिखती ही नहीं थी।


मोहब्बत या मायाजाल?


आरव ने सायरा से अपने दिल की बात कह दी।

सायरा चुप रही… फिर बोली —


> “तुम मेरे लिए जान भी दोगे?”


आरव ने बिना एक पल रुके कहा —


> “जान क्या, आत्मा भी दे दूंगा।”


सायरा की आंखों में आंसू थे, लेकिन होंठ मुस्कुरा रहे थे।

वो बोली —


> “फिर एक रात इस झील के साथ जीना होगा… या मरना।”


हवेली का रहस्य


सायरा ने आरव को हवेली में बुलाया। हवेली, जो झील के ठीक सामने थी — वीरान, टूटी-फूटी और सर्द।


हवेली के अंदर दीवारों पर पुरानी तस्वीरें थीं। एक तस्वीर में वही लड़की थी — सायरा, और उसके साथ एक युवक, जो हूबहू आरव जैसा दिख रहा था!


आरव घबरा गया —

“ये क्या है?”


सायरा ने कांपते स्वर में कहा —


> "मैं 1964 में मरी थी, आरव। मेरा मंगेतर आदित्य मुझे छोड़ गया था। मैंने उस दिन झील में छलांग लगा दी थी… तभी से मेरी आत्मा यहीं भटक रही है।"


आरव पसीने-पसीने हो गया।

“तो तुम भूत हो…?”


सायरा ने सिर झुकाकर कहा —


> “हां। लेकिन मैं तुमसे मोहब्बत करती हूं… शायद पिछले जन्म से।”


मौत से परे मोहब्बत


आरव पूरी रात सोचता रहा — क्या एक आत्मा से प्यार करना संभव है?

लेकिन दिल ने कहा — “वो आत्मा नहीं, तुम्हारा इश्क़ है।”


अगली रात आरव झील के किनारे पहुंचा। सायरा उसका इंतज़ार कर रही थी।

उसने आरव से कहा —


> “अगर तुम सच में मुझसे मोहब्बत करते हो, तो मेरे साथ झील में आओ। यही एक रास्ता है हम दोनों के मिलन का।”


आरव मुस्कुराया। उसने सायरा का हाथ थामा और कहा —


> “अगर तेरा साथ मरने में है, तो मैं खुशी से मरूंगा।”


दोनों ने एक-दूसरे को देखा, गले लगाया और फिर… झील में कूद गए।


दिल रोते रह गया


अगली सुबह गांव में कोहराम मच गया। झील का पानी पूरी तरह लाल हो गया था।

दोनों की लाशें कहीं नहीं मिलीं।


लेकिन जब गांव वालों ने झील के पास की हवेली में कदम रखा, तो दीवार पर एक नई तस्वीर टंगी थी —

आरव और सायरा, एक साथ… मुस्कराते हुए…


गांव के बुज़ुर्ग अब कहते हैं —


> “सायरा अब नहीं भटकती। उसकी आत्मा को उसका प्यार मिल गया। झील अब भी डरावनी है, पर जो सच्चा इश्क़ करता है… वो झील उसे अमर कर देती है।”


लेखक ने क्या खूब लिखा


यह कहानी काल्पनिक है, लेकिन इसके हर किरदार के पीछे कोई न कोई सच्चा जज़्बा है।

इश्क़, अगर सच्चा हो, तो उसे आत्मा चाहिए… शरीर नहीं।

कभी-कभी सच्चा प्यार सिर्फ मिलन से नहीं, बलिदान से अमर होता है।

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