"वो लड़की जो बस एक बार मिली थी… और मेरी पूरी ज़िंदगी बदल गई"
एक सच्ची कहानी, जो मोहब्बत से शुरू हुई… और डर के साए में खो गई।
💔 कहानी की शुरुआत होती है...
शहर का नाम था "मिर्जापुर", लेकिन ये वो मिर्जापुर नहीं था जो लोगों ने सीरीज़ में देखा था। ये एक शांत, पुराने खंडहरों से भरा, बरगदों की छांव में सोता हुआ शहर था। यहाँ की गलियों में अब भी हवाओं में पुरानी प्रेम कहानियों की फुसफुसाहट सुनाई देती थी।
आरव, पेशे से आर्किटेक्ट, 28 साल का, शांत स्वभाव का लड़का था। दिल्ली में पढ़ाई पूरी करके वो मिर्जापुर लौट आया था, अपने दादा की पुरानी हवेली को फिर से बनाने। उस हवेली का नाम था – "शंखविला"।
शंखविला में कदम रखते ही उसे अजीब सा एहसास हुआ। हवेली वीरान थी लेकिन ऐसा लगता था जैसे कोई लगातार उसे देख रहा हो। रात को हवा के साथ जैसे कोई साँसें ले रहा हो। लेकिन आरव डरा नहीं, वो ठान चुका था – इस हवेली को दोबारा जिंदा करेगा।
तीसरे ही दिन, जब वो पुरानी किताबें और नक्शे तलाश रहा था, तब पहली बार "सिया" को देखा –
पीछे की दीवार पर पड़ी एक तस्वीर में।
सफेद साड़ी, आंखों में रहस्य, और चेहरे पर ऐसा सूनापन जैसे सदियों से किसी का इंतज़ार कर रही हो।
रात होते ही हवेली में कुछ बदल जाता था। दीवारें बोलने लगती थीं, फर्श से सर्द हवाएं उठती थीं और एक कोना हमेशा अंधेरे में डूबा रहता था – वहां जहाँ तस्वीर लगी थी सिया की।
एक रात…
आरव की नींद टूटी – कमरे में सर्दी थी, लेकिन खिड़कियां बंद थीं। अचानक खिड़की खुली… और आरव ने पहली बार "उसे" देखा।
वही लड़की। वही सिया।
लेकिन अब वो तस्वीर में नहीं, हकीकत में उसके सामने खड़ी थी।
उसने कहा –
"तुम देर से आए हो आरव… मैंने सदियों तुम्हारा इंतज़ार किया है।"
आरव सिहर गया, लेकिन भागा नहीं।
उनकी बातचीत शुरू हुई। हर रात सिया आती, बातें करती। वो हँसती थी, लेकिन उसकी आंखों में कोई गहराई थी – जैसे कोई बहुत बड़ा दुख अंदर छुपा हो।
और फिर, एक रात उसने कहा:
"इस हवेली की कहानी जानोगे, तो तुम्हारा दिल काँप उठेगा… लेकिन जानना ज़रूरी है, क्योंकि अब तुम इससे जुड़ चुके हो।"
सिया की कहानी शुरू हुई – 1947 में…
सिया एक रईस घराने की लड़की थी, जिसके पिता ने देश बंटवारे से पहले हवेली में अंतिम सौदा किया था। उस समय एक नौजवान मजदूर से उसे प्यार हो गया था — नाम था "फरहान"। मगर जब घरवालों को पता चला, तो फरहान को जिंदा दीवार में चुनवा दिया गया।
सिया उस रात से कभी नहीं हँसी… धीरे-धीरे पागल हो गई… और एक दिन बरसात में छत से गिरकर मर गई।
शंखविला तभी से वीरान थी।
"लेकिन," आरव ने काँपते हुए पूछा –
"तुम तो मर चुकी हो, फिर…?"
सिया मुस्कराई,
"मैं मरी नहीं थी आरव… मुझे मारा गया था… और अब मैं तुमसे कुछ चाहती हूँ।"
"बदला।"
कहानी यहाँ से एक नया मोड़ लेती है।
आरव अब उस हवेली की मरम्मत नहीं कर रहा था — वो एक आत्मा की अधूरी प्रेम कहानी को पूरा करने में लग गया था।
वो दिल्ली गया, दस्तावेज़ निकाले, पुरानी अदालतों की फाइलें खोलीं… उसे पता चला कि फरहान को जिस परिवार ने मरवाया था, उसका वंशज आज भी उसी शहर में एक बड़ी हस्ती है – एक MLA।
आरव को पता चल चुका था – सिया अब शांत नहीं होगी जब तक उसके प्रेम को न्याय न मिले।
एक रात आरव ने MLA के बंगले के बाहर जाकर एक दीपक जलाया और कहा:
"अगर आज भी इस हवेली में प्रेम ज़िंदा है, तो ये दीपक तूफान में भी नहीं बुझेगा।"
और वाकई, उस रात जो तूफान आया, उसने पूरा शहर हिला दिया –
लेकिन वो दीपक नहीं बुझा।
सुबह, MLA की हृदयगति रुकने से मृत्यु हो गई।
अगली रात, आरव ने सिया को देखा — लेकिन इस बार वो मुस्करा रही थी।
"अब मैं जा सकती हूँ, आरव… लेकिन तुम्हें एक आखिरी बात बताने आई हूँ।"
"तुम वो फरहान ही हो… जिसने मेरे लिए जान दी थी… और मैं हर जन्म में तुम्हारा इंतज़ार करती रहूँगी।"
उसने धीरे से आरव का माथा चूमा… और गायब हो गई।
अंतिम दृश्य:
2 साल बाद, उसी हवेली में अब एक कैफ़े है – "Café Kohram"
जहाँ हर दीवार पर प्रेम और वियोग की कविताएं लिखी हैं।
आरव अब वहीं रहता है – वो किसी और को प्रेम नहीं करता। लेकिन हर बरसात की रात वो उस तस्वीर के सामने बैठता है और धीरे से कहता है:
"मैं फिर आउंगा… अगले जन्म में… और तुझसे फिर मिलूंगा, सिया।"
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