कभी-कभी ज़िन्दगी में हमें ऐसे लोग मिलते हैं, जो बिना कहे हमारे दिल में अपनी जगह बना लेते हैं। ये कहानी भी कुछ ऐसी ही है। शायद आपको भी पढ़ते हुए ऐसा लगे कि यह सिर्फ किसी की कहानी नहीं है… यह आपकी भी हो सकती थी
पहली मुलाकात
अदिति हर दिन ऑफिस जाने के लिए उसी लोकल ट्रेन से सफर करती थी। वही भीड़, वही स्टेशन, वही चेहरों की भीड़ में कोई खास नहीं दिखता था। लेकिन एक दिन, किसी किताब में डूबे एक लड़के ने उसकी नज़रें खींच लीं।
नाम था - आरव।
शांत, समझदार और किताबों में खोया हुआ लड़का।
अदिति की आदत बन गई थी - ट्रेन में उसे ढूंढना। कभी नजरें मिलतीं, तो दोनों हल्का-सा मुस्कुरा देते। कोई बात नहीं होती, बस वो छोटी-सी मुस्कान दिन को अच्छा बना देती थी।
धीरे-धीरे बढ़ता जुड़ाव
एक दिन बारिश बहुत तेज़ हो रही थी। अदिति स्टेशन पर भीग रही थी, तभी आरव ने बिना कुछ कहे अपना छाता उसके सिर के ऊपर कर दिया।
"ट्रेन लेट है… चलिए, कॉफी पीते हैं।" बस, इतने से शब्द थे, और दोस्ती शुरू हो गई।
कॉफी की वो पहली मुलाकात रोज़ के इंतज़ार में बदल गई। ट्रेन अब सिर्फ सफर नहीं थी, वो एक उम्मीद थी कि आज फिर वो मिलेगा।
लेकिन क्यूँ नहीं बताया?
अदिति हर दिन उसके साथ हंसती, बातें करती, मगर एक बात आरव कभी नहीं बताता था – कि वो कुछ महीनों बाद इस शहर से जा रहा था।
उसे एक जॉब ऑफर मिला था विदेश में। लेकिन शायद वो भी इस दोस्ती को नाम नहीं देना चाहता था, या शायद डरता था कि कहीं अदिति दूर न हो जाए।
अदिति को जब सच पता चला, तब आरव जाने के बस दो दिन बचे थे।
अंतिम मिलन
अदिति बिना कुछ बोले स्टेशन पहुंची। ट्रेन आने में अभी समय था। आरव भी आया, लेकिन नज़रें झुकी हुई थीं।अदिति ने बस इतना कहा –
"तुमने देर कर दी, लेकिन मैं अब भी यहीं हूं…"
आरव ने आंखें उठाईं, और शायद पहली बार दोनों समझ गए कि जो जुड़ाव था, वो कभी अल्फाज में बंधा ही नहीं।
वो चला गया, मगर…
कहते हैं कुछ लोग हमारी ज़िन्दगी में बस एक मौसम की तरह आते हैं। लेकिन वो मौसम अपनी खुशबू छोड़ जाते हैं।
आज भी अदिति उसी ट्रेन में सफर करती है। लोग पूछते हैं – "तुम अब भी उसी ट्रेन में क्यों जाती हो?"
वो बस मुस्कुराकर कहती है – "क्योंकि कभी-कभी, किसी का इंतज़ार ही सबसे खूबसूरत प्यार होता है।"
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